2025 का उभरता वैश्विक बदलाव: AI की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतें और हमारे सामने खड़े नए सवाल


AI's growing energy needs and the new challenges we face by Ravi Kumar Manjhi

पिछले कुछ वर्षों में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस दुनिया की सबसे प्रभावशाली तकनीक बनकर उभरी है। चैटबॉट्स, स्मार्ट असिस्टेंट और अनुवाद उपकरण ये सभी हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बनते जा रहे हैं। लेकिन इसी क्रांति का एक ऐसा पहलू है, जिसकी चर्चा अब तक उतनी नहीं हुई। वह छिपा हुआ पहलू है AI मॉडल्स और डेटा सेंटर्स की तेजी से बढ़ती ऊर्जा खपत, जिसने 2025 में वैश्विक स्तर पर नई बहस को जन्म दिया है। जैसे-जैसे AI मॉडल अधिक शक्तिशाली होते जा रहे हैं, उनकी ऊर्जा माँग भी उसी गति से बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि ऊर्जा विशेषज्ञ, नीति निर्माता और तकनीकी शोधकर्ता इस विषय पर गंभीरता से चर्चा कर रहे हैं।

जानिए वैज्ञानिक आँकड़े क्या कह रहे हैं

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की ऊर्जा भूख को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई रिपोर्टें चेतावनी दे रही हैं।

International Energy Agency की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में विश्व के डेटा सेंटर्स की कुल बिजली खपत लगभग 415 TWh थी। IEA का अनुमान है कि 2030 तक यह खपत दोगुनी होकर 940 से 1050 TWh के बीच पहुँच सकती है। यह आँकड़ा बताता है कि डेटा इंफ़्रास्ट्रक्चर की ऊर्जा जरूरतें अब कुछ देशों की कुल बिजली खपत से भी आगे निकलने वाली हैं।

Deloitte की Technology Predictions 2025 रिपोर्ट भी इसी दिशा में संकेत करती है। इसमें बताया गया है कि जनरेटिव AI एक सामान्य सर्च क्वेरी की तुलना में दस से सौ गुना अधिक बिजली का उपभोग करता है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक डेटा सेंटर्स की ऊर्जा माँग दोगुनी होने की संभावना है।

ये दोनों रिपोर्टें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि AI जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, ऊर्जा खपत उससे भी अधिक तीव्रता से बढ़ रही है।

समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

AI की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता केवल तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इसका प्रभाव व्यापक है, जो समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण तक फैला हुआ है। आम उपयोगकर्ताओं के लिए इसका सीधा परिणाम इंटरनेट सेवाओं की संभावित महँगी लागत, बिजली पर बढ़ता दबाव और डिजिटल सेवाओं की कीमतों में वृद्धि के रूप में दिखाई दे सकता है। व्यवसायों के लिए यह चुनौती और बड़ी है। क्लाउड सेवाओं से लेकर डेटा प्रोसेसिंग तक, हर प्रक्रिया महँगी होती जा रही है। ऐसी स्थिति में कंपनियों के लिए ऊर्जा-कुशल तकनीक अपनाना मजबूरी बन गया है। यही कारण है कि “ग्रीन AI” और ऊर्जा-संवेदनशील मॉडल आज उद्योग की प्राथमिक आवश्यकता बनते जा रहे हैं।

पर्यावरण के मोर्चे पर यह स्थिति और भी गंभीर है। अधिक बिजली का अर्थ है अधिक कार्बन उत्सर्जन, जो वैश्विक तापमान वृद्धि में योगदान देता है। तकनीक और पर्यावरण के बीच यह संघर्ष भविष्य की नीतियों और तकनीकी रणनीतियों को प्रभावित करने वाला है।

नई दिशा: छोटे मॉडल, बड़ा प्रभाव

2025 में एक महत्वपूर्ण शोध प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक “Small is Sufficient” है। Tiago da Silva Barros और उनकी टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन में स्पष्ट किया गया कि यदि तकनीकी कंपनियाँ अत्यधिक बड़े AI मॉडल्स की जगह छोटे लेकिन सटीक और प्रभावी मॉडल अपनाएँ, तो दुनिया सालाना 30 TWh से अधिक बिजली बचा सकती है। यह शोध इस बात पर बल देता है कि AI का भविष्य अनिवार्य रूप से बड़े मॉडलों में नहीं है। बल्कि यह इस दिशा में है कि तकनीक किस तरह कम संसाधनों में अधिक दक्षता ला सके। यह विचार आज वैश्विक तकनीकी उद्योग में तेजी से स्वीकार किया जा रहा है।

दुनिया समाधान कैसे खोज रही है?

बढ़ती ऊर्जा चुनौती को देखते हुए कई देश और संस्थाएँ समाधान तलाशने में जुट गए हैं। ग्रीन डेटा सेंटर्स का विकास तेज़ी से हो रहा है, जहाँ ऊर्जा का अधिकांश हिस्सा सौर, पवन और जल आधारित स्वच्छ स्रोतों से लिया जा रहा है। इसके अलावा कई कंपनियाँ ऊर्जा-कुशल AI मॉडल, नए कूलिंग सिस्टम और बेहतर सर्वर आर्किटेक्चर तैयार कर रही हैं, जो कम बिजली में अधिक प्रदर्शन दे सकें।

नीति स्तर पर भी बदलाव दिखाई देने लगे हैं। कई देश AI उपयोग से जुड़े ऊर्जा मानकों, उत्सर्जन नियमों और टिकाऊ तकनीक के दिशा-निर्देश तैयार कर रहे हैं। इसका उद्देश्य AI के विकास को व्यावहारिक बनाना है, ताकि तकनीक और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रहें।

निष्कर्ष

AI का विकास एक वैश्विक क्रांति है और आने वाले वर्षों में यह मानव जीवन के लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित करने वाला है। लेकिन इस विकास की वास्तविक कीमत ऊर्जा और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव में छिपी हुई है। 2025 हमें यह सिखाता है कि तकनीकी प्रगति जितनी तेज हो, उसका संतुलन ऊर्जा दक्षता और पर्यावरण संरक्षण के साथ होना उतना ही आवश्यक है। भविष्य का AI वही होगा जो शक्तिशाली होने के साथ-साथ टिकाऊ भी होगा।




लेखक: रवि कुमार माँझी

(अबु धाबी, संयुक्त अरब अमीरात)

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