WTO: वैश्विक व्यापार में विकास और संरक्षणवाद का संतुलन

WTO: Balancing development and protectionism in global trade by Ravi Kumar Manjhi.

अमेरिका के एकतरफा शुल्क बढ़ाने के कदम ने WTO (World Trade Organization) की ताकत और भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे वैश्विक व्यापार में विवाद सुलझाने और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा बनाए रखने की इसकी भूमिका कमजोर होती दिख रही है। विश्व व्यापार संगठन (WTO), 1995 में मैराकेश समझौते के तहत स्थापित, वैश्विक व्यापार का केंद्रीय मंच है। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है और 166 सदस्य देश इसका हिस्सा हैं, जो वैश्विक व्यापार का लगभग 98% प्रतिनिधित्व करते हैं।

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मुख्य कार्य

* नियम और वार्ता का मंच: WTO बहुपक्षीय मंच प्रदान करता है, जैसे 2013 का Trade Facilitation Agreement, जो व्यापार बाधाओं को कम करता है।

* व्यापार पूर्वानुमान: टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम कर वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाता है।

* पारदर्शिता और निगरानी: Trade Policy Review Mechanism (TPRM) के माध्यम से नीतियों की निगरानी होती है।

* विकासशील देशों को सहायता: तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण के जरिए उन्हें वैश्विक व्यापार में शामिल करता है।

* विकास और संरक्षणवाद का संतुलन: सतत विकास, खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों के अनुरूप व्यापार नीतियों को ढालता है।

WTO की मुख्य चुनौतियाँ

* WTO की अपीलीय निकाय वर्ष 2019 से कार्यशील नहीं है, जिससे बहुपक्षीय विवाद निपटान प्रणाली की विश्वसनीयता कमज़ोर हुई।

* मुक्त व्यापार समझौतों (FTA), द्विपक्षीय संधियों तथा क्षेत्रीय गुटों (जैसे EU, ASEAN) की बढ़ती संख्या ने वैश्विक व्यापार को छोटे-छोटे वरीयतापूर्ण व्यवस्थाओं में बाँट दिया है, जिससे WTO का बहुपक्षीय दृष्टिकोण कमज़ोर हुआ है।

WTO में सुधार की आवश्यकता 

* विवाद निपटान प्रणाली को पुनर्जीवित करना।

* पारदर्शिता और रिपोर्टिंग में सुधार।

* IMF, World Bank, UNCTAD और जलवायु संस्थाओं के साथ सहयोग बढ़ाना।

* डिजिटल और हरित व्यापार नियम विकसित करना।

भारत की भूमिका

भारत बहुपक्षीय व्यापार शासन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह WTO में विकासशील और अल्प-विकसित देशों का प्रतिनिधित्व कर उनके हितों जैसे खाद्य सुरक्षा, सब्सिडी और न्यायसंगत बाज़ार पहुँच को सुनिश्चित कर सकता है। साथ ही, यह व्यापार को सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) से जोड़ने, जलवायु-न्यायसंगत नीतियों और हरित संरक्षणवाद का विरोध करने जैसी पहलें कर सकता है। अपनी मजबूत विनिर्माण, डिजिटल और सेवा अर्थव्यवस्था के कारण भारत एक आदर्श उदाहरण बन सकता है, जो विकास और वैश्विक एकीकरण के बीच संतुलन दिखाता है। 

WTO वैश्विक व्यापार का स्तंभ बना रह सकता है, बशर्ते समय पर सुधार और सदस्य देशों की सक्रिय भागीदारी हो। भारत जैसी अर्थव्यवस्थाएँ इसे संतुलित और सतत व्यापार की दिशा में मार्गदर्शन दे सकती हैं।



लेखक: रवि कुमार माँझी

(अबु धाबी, संयुक्त अरब अमीरात)

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